जयपुर, 5 अप्रैल 2025: राजस्थान स्टाफ सिलेक्शन बोर्ड (RSSB) की भर्ती परीक्षाओं में नॉर्मलाइजेशन प्रक्रिया और रिजल्ट में देरी को लेकर युवाओं का गुस्सा (Normalization Controversy) थमने का नाम नहीं ले रहा।

बोर्ड के अधिकारी अलोक राज (@alokrajRSSB) ने 5 अप्रैल को एक ट्वीट में कहा कि वह 7 अप्रैल को शहर से बाहर होंगे, इसलिए प्रदर्शनकारी युवा अपनी बात बोर्ड कार्यालय में ज्ञापन के जरिए रखें। उन्होंने यह भी कहा कि “धरने-प्रदर्शन से ज्यादा ताकत तर्क में होती है,” लेकिन इस बयान ने युवाओं को और भड़का दिया।
अलोक राज का यह ट्वीट (https://x.com/alokrajRSSB/status/1908448758980837572) तेजी से वायरल हो गया, और इसके जवाब में उम्मीदवारों ने अपनी नाराजगी जाहिर की।
उम्मीदवारों के कुछ चुनिंदा ट्वीट
@rakeshmeel1997 ने तंज कसते हुए लिखा, “तर्क आपको दिखता नहीं क्या? शिफ्ट वाइस डेटा देख लें, टॉप 5000 में 6th शिफ्ट से 4300 कैसे आए? धरने से सरकार गिर जाती है, घमंड अच्छा नहीं।”
वहीं, @thejangidsushil ने हताशा जाहिर करते हुए कहा, “हम IA वाले तर्क देते-देते बूढ़े हो गए, तीन साल से एक ना सुनी। बताओ अब क्या करें?“

युवाओं का सबसे बड़ा गुस्सा नॉर्मलाइजेशन प्रक्रिया पर है, जिसके तहत अलग-अलग शिफ्ट्स में हुई परीक्षाओं के स्कोर को बराबर किया जाता है।

@MonuSharma9716 ने व्यंग्य करते हुए लिखा, “पहले पेज पर सारे 6th शिफ्ट के ही हैं, तो क्या बाकी शिफ्ट में बेवकूफ ही बैठे थे? उनमें कोई इंटेलिजेंट नहीं था? ” कई उम्मीदवारों ने इसे “अन्याय” करार दिया और नॉर्मलाइजेशन को खत्म करने की मांग की।

हिंदुस्तान टाइम्स की एक 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, नॉर्मलाइजेशन प्रक्रिया पहले भी विवादों में रही है, जब CUET परीक्षा में इसे “अनुचित” बताया गया था।
RSSB की जूनियर इंस्ट्रक्टर और पशु परिचर जैसी भर्तियों में भी यही मुद्दा अब गरमाया हुआ है। युवाओं का कहना है कि इस प्रक्रिया से उनकी मेहनत बेकार हो रही है, और वे अब सड़कों पर उतरने को मजबूर हैं।

नॉर्मलाइजेशन क्या है? (What is Normalization in Hindi)
नॉर्मलाइजेशन एक ऐसी प्रक्रिया है जो मुख्य रूप से दो क्षेत्रों में इस्तेमाल होती है: परीक्षा स्कोर समायोजन और डेटाबेस मैनेजमेंट सिस्टम (DBMS)। चूंकि यहाँ संदर्भ RSSB भर्ती परीक्षाओं का है, मैं परीक्षा से संबंधित नॉर्मलाइजेशन पर ध्यान दूंगा।
परीक्षा में नॉर्मलाइजेशन का मतलब
जब कोई परीक्षा अलग-अलग तारीखों या शिफ्ट्स में आयोजित की जाती है, तो हर शिफ्ट का प्रश्नपत्र अलग होता है। इन प्रश्नपत्रों की कठिनाई का स्तर भी अलग हो सकता है—कभी एक शिफ्ट का पेपर आसान होता है, तो दूसरी शिफ्ट का कठिन। ऐसे में, यह सुनिश्चित करने के लिए कि किसी भी उम्मीदवार को न तो अनुचित फायदा हो और न ही नुकसान, नॉर्मलाइजेशन प्रक्रिया अपनाई जाती है।
अलोक राज ने भले ही तर्क की बात की हो, लेकिन सोशल मीडिया पर युवाओं की प्रतिक्रियाएं बता रही हैं कि बोर्ड के खिलाफ उनका गुस्सा अब चरम पर है। क्या बोर्ड इन मांगों पर ध्यान देगा, या यह आंदोलन और बड़ा रूप लेगा? यह देखना बाकी है।